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त्रिश्चि॑द॒क्तोः प्र चि॑कितु॒र्वसू॑नि॒ त्वे अ॒न्तर्दा॒शुषे॒ मर्त्या॑य। म॒नु॒ष्वद॑ग्न इ॒ह य॑क्षि दे॒वान्भवा॑ नो दू॒तो अ॑भिशस्ति॒पावा॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

triś cid aktoḥ pra cikitur vasūni tve antar dāśuṣe martyāya | manuṣvad agna iha yakṣi devān bhavā no dūto abhiśastipāvā ||

पद पाठ

त्रिः। चि॒त्। अ॒क्तोः। प्र। चि॒कि॒तुः॒। वसू॑नि। त्वे इति॑। अ॒न्तः। दा॒शुषे॑। मर्त्या॑य। म॒नु॒ष्वत्। अ॒ग्ने॒। इ॒ह। य॒क्षि॒। दे॒वान्। भव॑। नः॒। दू॒तः। अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपावा॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:11» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:1» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

किसके होने पर मनुष्य उत्तम गुण को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् ! (त्वे) आपके (अन्तः) बीच (दाशुषे) दानशील (मर्त्याय) मनुष्य के लिये (वसूनि) द्रव्यों को (अक्तोः) रात्रि के सम्बन्ध में (चित्) भी (त्रिः) तीन वार विद्वान् (प्र, चिकितुः) जानते हैं आप (इह) इस जगत् में (मनुष्वत्) मनुष्यों के तुल्य (देवान्) विद्वानों का (यक्षि) सत्कार कीजिये आप (नः) हमारे (दूतः) दूत के समान (अभिशस्तिपावा) प्रशंसितों के रक्षक पवित्रकारी (भव) हूजिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जिसके सङ्ग से मनुष्यों को दिव्य गुण और पुष्कल धन प्राप्त होते हैं, इस जगत् में उसी की स्तुति कर, जो दूत के तुल्य परोपकारी होता है, वह सब को सत्य जताने को समर्थ होता है ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

कस्मिन् सति मनुष्या दिव्यान् गुणान् प्राप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वेऽन्तर्दाशुषे मर्त्याय वसून्यक्तोश्चित् त्रिः विद्वांसः प्रचिकितुस्त्वमिह मनुष्वद् देवान् यक्षि त्वं नो दूतइवाभिशस्तिपावा भव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्रिः) त्रिवारम् (चित्) अपि (अक्तोः) रात्रेः (प्र) (चिकितुः) विजानन्ति (वसूनि) द्रव्याणि (त्वे) त्वयि (अन्तः) मध्ये (दाशुषे) दात्रे (मर्त्याय) मनुष्याय (मनुष्वत्) मनुष्यैस्तुल्यम् (अग्ने) विद्वन् (इह) (यक्षि) यजसि (देवान्) विदुषः (भव) (नः) अस्माकम् (दूतः) दूत इव (अभिशस्तिपावा) प्रशंसितानां पालकः पवित्रकरः ॥३॥
भावार्थभाषाः - यस्य सङ्गेन मनुष्यान् दिव्या गुणाः पुष्कलानि धनानि च प्राप्नुवन्ति तमेवेह स्तुत्वा यो दूतवत्परोपकारी भवति स सर्वानिह सत्यं प्रज्ञापयितुं शक्नोति ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याच्या संगतीने माणसांना दिव्य गुण व पुष्कळ धन प्राप्त होते त्याचीच स्तुती करा. जो दूताप्रमाणे परोपकारी असतो तो सर्वांना सत्य समजावून देण्यास समर्थ असतो. ॥ ३ ॥